आंदोलनकारी / आदोलनपरजीवी

अपने  हक की लड़ाई  के लिए  आंदोलन होना कोई  नई  बात  नहीं है    19 अप्रैल  1917  मे बिहार के  चंपारण  जिले में   गांधी  जी  के  नेतृत्व   मे हुआ  उस  समय भारत  पर अंग्रेजी  हुकूमत  का राज था   अंग्रेज नील  की खेती  करने  के  लिए  किसानों  पर  बाध्य  करते थे  नील  एक रंजक पदार्थ  है  जिसका प्रयोग  वस्त्र  उद्योग   मे डाई  के लिये  किया  जाता  है इसकी बढी मांग  के कारण  इसकी खेती  अंग्रेजों  द्वारा  दक्षिण  अफ्रीका  के साथ - साथ  भारत में  भी  शुरू  करा दी  गयी  भारतीय  किसान  अनाज और नगदी   फसले उगाने  की  इच्छा  रखता था , उसको नील  की खेती के लिए  अंग्रेजों  ने  बाध्य किया   नील  की  खेती  को उपजाऊ  भूमि  में  ही होती  हैं नील को कम उपजाऊ  भूमि में  नहीं  लगाया  जा  सकता है  , साथ नील  की खेती  भूमि  की  उर्वरता  पर नकारात्मक  प्रभाव  डालती हैं  जिस कारण किसान  अन्य  फसले नहीं उगा पाता था    चंपारण  नील  आदोलन  का नेतृत्व  सबसे पहले पं राज  कुमार  शुक्ल  द्वारा  किया  गया   उनहोंने  एक किसान  होने  के  सबसे  पहले  इसके  खिलाफ  आवाज बुलंद की वर्ष  1915 मे महात्मा  गाँधी  जी का आगमन  हुआ   तब वे कलकत्ता  आगरा  में  मिले उन्हे  किसानों  पर हुए अत्याचार  से  अवगत  कराया  नीले साहिब के साथ मुलाकात  हुई    एक जांच  समिति  गठित  की गई   महात्मा  गांधी  इसके  प्रमुख  सदस्य  बनें  फलस्वरूप  चंपारण  कृषि  अधिनियम  1918 बना  इसी तरह एक ओर  आदोलन  हुआ गुजरात  के  अहमदाबाद  में  मिल  मजदूरो व मालिकों  के  बीच  इस आदोलन  का नेतृत्व  अनुसुइया  बेन सारा भाई व महात्मा गांधी  जी  ने  किया  विवाद  का कारण  प्लेग  बोनस  को शुरू करना  व  वेतन  वृद्धि  था   1917 मे प्लेग  फैलने पर  मज़दूरों  ने  पलायन  शुरू  कर दिया   जिसे रोकने  हेतु  मिल मालिकों  द्वारा  मजदूरो  को  प्रति माह  प्लेग  बोनस  दिया  गया   इस बीमारी  के  प्रकोप  मे  कमी आने  पर बोनस  देना   बंद  कर दिया  गया   बाद में   आदोलन  के  जोर पकड़ने पर मांगे मान ली गई   मजदूर  संगठन  व किसान  संगठन   मजदूरो  व किसानों  पर अत्याचार  को खत्म करने के लिए  व उनकी तरक्की  के लिये  बनाए  गए  थे  व आदोलन  करने  का अधिकार  इसलिए  दिया  गया  था  कि  किसी  का शोषण  ना हो लेकिन  धीरे -  धीरे ये  राजनीति  व शोषण  का  ही अडडा  बनता  गया   अब तो  यह गुण्डागर्दी  का अडडा  बन गया  क्या इसलिए  गांधी  जी ने  आदोलन  रूपी हथियार  दिया  था  शोषण  के  विरुद्ध   नहीं  बिलकुल  नहीं   अब तो   जो देखो अपनी  जायज - नाजायज  माँग मनवाने के लिए  आदोलन  कर बैठता है   आदोलन  की  आड़  में  बसों को आग लगा  देता है    पुलिस  पर  हमला  करता  है    पुलिस  की  गाड़ियों में  आग लगा  दी जाती  हैं   फिर  भी  इलैक्ट्रॉनिक  व  प्रिंट  मीडिया  इसका विरोध  नहीं  करता  इसे भी  अभिव्यक्ति  की  आजादी  का नाम  देता है सरकार  किसानों  की  तरक्की  के  लिये  कानून  लाई ।  जिससे   किसान  का मुनाफा  किसान  को  ही  मिले बिचौलिया ना खायें  किसान  को आत्मनिर्भर  बनाने  के लिए  लिए  लाया  गया  कोई  भी  कानून  अकेले  सरकार  नहीं  बना सकती है  कानून  बनाने  के लिए  लिए   विपक्ष  का सहयोग  और समर्थन  आवश्यक  है  उसके  बिना  कोई  कानून  बन नहीं  सकता  विपक्ष  सदन में  बिल के  समर्थन  में  अब विरोध  मे कैसे   ये  सिर्फ  सत्ता  हथियाने  का एजेंडा  है  किसान  आदोलन  कि आड़ में  पुलिस  पर  ट्रैक्टर  चलाना  क्या  जायज है   26 जनवरी  2021 का दिन       भारतीय  स्वतन्त्रता  के  इतिहास  का  काला दिन  बना  दिया गया   पुलिस  को इतना  डराया गया  कि जान बचाने  के  लिये  पुल से  कूदना पडा जैसा  अंग्रेजों  की  दासता  के  समय  क्रांतिकारियों  के साथ  हुआ  था  जलियाँवाला बाग हत्याकांड  में  ये  किसान  आदोलन  नहीं   भारतीय स्वतन्त्रता अखण्डता  व भारतीय  लोकतंत्र  पर हमला  है  ये  सरकार  के विरुद्ध  असंतोष ,   विरोध या कानून  के  प्रति  विरोध  नहीं  है ये  सोची -  समझी साजिश  व राजनीति  से  प्रेरित  है  टिकैट  नहीं  टिकैट  के पिता  असली  किसान  थे जिनको  अन्य  किसानों  के  साथ   गोली  मार दी  गई थी  किसान  आदोलन  में  अब जो हो रहा  है  ये  एजेंडा  है  विपक्षी दलों का  व कनाडा  जैसे  कई देश इसमें  शामिल  हैं  

ऐसा  ही दूसरा  है  जवाहर लाल नेहरू  यूनिवर्सिटी   का  विरोध प्रदर्शन  जोकि  दिल्ली  में  हुआ  था   इसका मास्टरमाइंड  उमर ख़ालिद है  छात्र संघ  अध्यक्ष  कन्हैया  कुमार  भी  शामिल  है उमर ख़ालिद  जैश - ए मोहम्मद  का ट्रेंड  आतंकी  है  उसी ने अफजल  नामक  आतंकवादी  की बरसी  बनाई इसमें  उमर ख़ालिद  का दिमाग  काम कर रहा  था  ।उसने  नारे लगवाएं  ;भारत तेरे  टुकड़े  होगे  इंशा  अल्लाह "इंडिया  गो बैक कश्मीर  की  आजादी  तक जंग  रहेगी  , भारत की बरबादी तक जंग  रहेगी  आज तक व एन डी  टी वी  ने तो  इन्हें  भी  निर्दोष  छात्र  बताते  रहे  जब तक सबूत  नहीं  मिले  उसके  बाद  भी  निर्लजता  से इसे अभिव्यक्ति की  आजादी  तक  बता दिया   जब पुलिस  कैंपस मे  आई तो  एक  छात्रा  दिखायी गयी  ये  कहती हुई शोर महकाती हुई  की पुलिस  हम पर अत्याचार  कर रही है  हम  निर्दोष  छात्र  है  आज लोकतंत्र  का गला घोंटा  जा  रहा है  ये  सब एजेंडा  था  मीडिया  का  जब  पोल खुल  गई  फिर  भी  उन्हे  शर्म  नहीं  थी इसके  बाद  भी  एजेंडे  के  तहत  फेक  वीडियो   लाकर दिखाते रहे  ताकि  आम भोली जनता  को भ्रमित  कर सके और सहानुभूति  पैदा  करे  इन लोगों  के लिये  समर्थन  जुटाने सके

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